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कविता – जसवीर सिंह हलधर

गांधी जी का नाम ओढ़ना ,जिनका कारोबार रहा है ।

कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।

 

अहंकार में झूल रही है ,पी पी खून देश का खादी ।

ओसामा को जी जी कहते, मामा है इनका बगदादी ।

मणिपुर पूरा लाल हुआ रे ,शोणित के छूटे फब्बारे ,

आतंकों का ओढ दुशाला ,दानव पैर पसार रहा है ।

कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।1

 

गंगा सिसक सिसक रोती है ,यमुना जी मैला ढोती हैं ।

जागो जागो देश वासियों ,नदियां सब आपा खोती हैं ।

खाद यूरिया को जो खाए ,भारत मां को मरा बताए,

संसद के संवाद देख कर ,संविधान धिक्कार रहा है ।

कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।2

 

अगर आज हम संभल न पाए ,देश हमारा बट जाएगा ।

भाई के हाथों भाई का ,गला देश में कट जाएगा ।

लाल रंग के वस्त्र पहनकर ,डायन धूम रही बन ठन कर ,

एक पड़ौसी विषधर फिर से ,सरहद पर फुंकार रहा है ।

कलम उठी कविता लिखने को,कवि उनको ललकार रहा है ।।3

 

चीन हमारा जानी दुश्मन , समझो उसको कभी न भाई ।

कीमत बड़ी चुकानी होगी , गलती यदि हमने दुहराई ।

कुछ माओ को ख़ास बताते ,और मार्क्स की कथा सुनाते ।

अपनो के हाथों ही “हलधर “,भारत घर में हार रहा है ।

कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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