रिमझिम बारिश से सावन में, धरती नम हो जाती है,
सभी वनस्पतियों वृक्षों पर, हरियाली मुस्काती है।
संस्कृति अपनी सजग बहुत है, वृक्षों की पूजा करती,
हरीतिमा को आदर देकर, ही खाद्यान्न जुटाती है।
जब जब सोमवार के दिन में , प्रगट अमावस्या होती,
पूजन पीपल तुलसी का कर, जनता खुशी मनाती है।
पूजन कर के हल का हरदम , हलधर उसको अपनाये,
दिवस अमावस को सावन में , घड़ी सुघड़ वह आती है।
वर्षा पर निर्भर हम सब हैं, भोजन नीर वही देती,
सुखदाई वर्षा जब होती, तब दुनियाँ सुख पाती है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश