मनोरंजन

हे द्वारकाधीश – रेखा मित्तल

हे कृष्ण

समाज के आखिरी प्रहरी

व्याप्त हो आप सर्वत्र

फिर भी खोजती हूंँ

सब कहते दिल से पुकारो

पर मेरी आवाज़ तुम तक नहीं पहुंँचती

अगर कहूँ,आप सुन ही नहीं रहे

तो सत्य भी हो जाएगा असत्य।

हे द्वारकाधीश

संसार रूपी कुरुक्षेत्र के नायक

महाभारत में बने अर्जुन के सारथी

दिया कर्म का अद्भुत ज्ञान

परंतु मैं तो कह भी नहीं पाई,

व्यथा अपने मन की,अर्जुन की भांति

विवश थी,या परिस्थितिवश

शायद मेरे पास कृष्ण ही नहीं थे

हे युगपुरुष

संघर्षों में जन्मे,खतरों में पले

बाल गोपाल की पुकार पर

कर दिया कालिया नाग का मर्दन

काश प्रेम करती सुदामा की तरह

मैं अकिंचन,आप प्रेम के भूखे

चबाते चने धन्य हो जाता जीवन

पुकारा जब बेबस द्रोपदी ने तुम्हें

बन गए तुम स्त्री के आखिरी प्रहरी

हे द्वारकाधीश

भ्रष्टाचार ,हिंसा ,असत्य का बोलबाला

असमंजस में है आज बहुत से अर्जुन

दुविधा दूर करो, देकर कर्म योग का ज्ञान

आज भी लूट रही अस्मिता द्रोपदी की

आना होगा तुम्हें बनकर,समाज के प्रहरी

पलायन नहीं, कर्म करना होगा

जीवन को जीने के लिए संघर्ष करना होगा

– रेखा मित्तल , चंडीगढ़

Related posts

कविता (अमर जवान) – जसवीर सिंह “हलधर”

newsadmin

सार्क की चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है भारत ? – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

आओ दौड़े – सुनील गुप्ता

newsadmin

Leave a Comment