किसी का जहाँ में ठिकाना नहीं अब,
जगाये मुहब्बत निशाना नहीं अब।
रहें साथ मिलकर बता कौन सोंचे,
नया यह नजरिया पुराना नहीं अब।
करें लोग बकझक जले और जलाये,
सही कौन सोंचे सयाना नहीं अब।
जिधर आज देखो उगलते जहर सब,
फिकर कौन करता बताना नहीं अब।
अकड़ आज कितना सदा बेवफाई,
रुलाता जमाना हँसाना नहीं अब।
सभी चाहतें बस खुशी झूम गाये,
चलो प्यार बांटे बहाना नहीं अब।
खिले फूल दिल में रहे प्यार से ‘अनि’,
वतन गीत गायें भुलाना नहीं अब।
अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड