मनोरंजन

पूछता चाहती हूँ – ज्योत्स्ना जोशी

इस के जैसे मत बनना

और उसके जैसे बन जाना

उसके जैसे बन जाना कुछ

हद तक उचित है,

लेकिन इसके जैसे मत बनना

ये निर्णय तुम कैसे ले सकते हो

क्या इसके जीवन की परत परत

टटोली है तुमने

या उन परतों पर जो काई जमी है

उसके जमने की वजह से वाकिफ हो

मैं पूछता चाहती हूँ उन तथाकथित कवियों से?

कि तुम कितना दाखिल हो उसके जीवन में

जो ये शब्दों के दखल रखें हैं ,

आत्ममुग्धता की ये पराकाष्ठा कि

तुमको सिर्फ़ अपना कवि होना याद रहा

इंसान होना नहीं ?.

– ज्योत्स्ना जोशी , चमोली , उत्तरकाशी, उत्तराखंड

Related posts

जन्मदिन – सुधीर श्रीवास्तव

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

राष्ट्रीय कवि संगम इकाई मुंगेली के तत्वावधान में भव्य काव्य गोष्ठी और सम्मान समारोह आयोजित

newsadmin

Leave a Comment