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गीत – मधु शुक्ला

राह  और  हरियाली  का  हो, मिलन तभी जीवन हँसता है,

वृक्ष  लगाओ  शुभ  कर्मों  के , बात  यही  सब  से  कहता है।

 

सच्चाई  से  करे  किनारा, जीवन  सुख  वह  भोग  न पाता,

लोभ, मोह  के  चंगुल  में  फँस, अपनी  करनी  पर पछताता,

सदा  आलसी  ढ़ोंगी  मानव,  दोष  मुकद्दर  पर  मढ़ता है…. ।

 

मीठी  वाणीं  का  जल  पातीं, साथ  बहारें   तभी निभातीं,

मानवता  की  मृदुल  धरा  पर, यश  उन्नति  के पुष्प खिलातीं,

पार  कर्म  पतवारों  से  मनु , जीवन  सागर  को  करता है…… ।

 

जन  सेवा,  हमदर्दी,  करुणा,  पेड़  दुआओं  के  उपजाते,

शीतलता   हरियाली   जैसी ,  पावन  मन  इनसे  ही  पाते,

समता, अपनेपन  से  मिलकर , मानव हरि से मिल सकता है…… ।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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