राह और हरियाली का हो, मिलन तभी जीवन हँसता है,
वृक्ष लगाओ शुभ कर्मों के , बात यही सब से कहता है।
सच्चाई से करे किनारा, जीवन सुख वह भोग न पाता,
लोभ, मोह के चंगुल में फँस, अपनी करनी पर पछताता,
सदा आलसी ढ़ोंगी मानव, दोष मुकद्दर पर मढ़ता है…. ।
मीठी वाणीं का जल पातीं, साथ बहारें तभी निभातीं,
मानवता की मृदुल धरा पर, यश उन्नति के पुष्प खिलातीं,
पार कर्म पतवारों से मनु , जीवन सागर को करता है…… ।
जन सेवा, हमदर्दी, करुणा, पेड़ दुआओं के उपजाते,
शीतलता हरियाली जैसी , पावन मन इनसे ही पाते,
समता, अपनेपन से मिलकर , मानव हरि से मिल सकता है…… ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश