मैं अकिंचन, मैं अबोध, तेरे दर्शन को आया।
जप, तप,योग, ध्यान न जानूं तेरे दर पे हूं आया।
हे भोले शंकर, शिव शंभू दयानिधे, तेरे पास हूं आया।
पूरी करना मनोरथ हे प्रभु,तेरी ही आशा लिए आया।
भारत के जन-जन हो सम्पन्न, भिक्षु, बुभुक्षित कोई न हो।
शिक्षा का चहुंमुखी विकास हो कोई भी अज्ञानी न हो।
तन-मन से स्वस्थ हर जन हो कोई रोगी और विकृतकाय न हो।
ज्ञान-विज्ञान का उजाला सर्वत्र हो कोई कुत्सित-बुद्धि न हो।
हे भोलेनाथ तेरी कृपा से खुशियां चारों ओर है।
सफलीभूत हो रही सबकी मनोकामना ज्ञान-प्रकाश हर ओर है।
अपने-अपने सुंदर कर्मों में प्रवृत्त देश का हर जन है।
तेरी दया से हे भोलेबाबा भारत भूमि जगमग है।
अर्चना तेरी करूं प्रार्थना तुझसे करूं अपने चरणों में शरण मुझे देना।
सावन में हरियाली सब खेत में रहे सब कृषकों को खुशी देना।
देवघर धाम गंगाजल लाकर बाबा वैद्यनाथ का अभिषेक करूं।
इतना सामर्थ्य मुझे देना हे प्रभु तेरी भक्ति से मैं कभी न टरूं।
– मुकेश कुमार दुबे “दुर्लभ” (शिक्षक सह साहित्यकार), सिवान, बिहार