आज मिलता प्यार में धोखा उसूलों में,
डूबता फिर आदमी गम के अजाबों मे।
वीर बैठे सरहदों पर भूल घर अपना,
चैन से हम सो रहे अपने मकानो में।
जिंदगी कटती रहे खुशहाली में यारो,
अब कभी फँसना नही दुनिया की चालों मे।
आ गया सावन जरा अब झूम कर नाचों,
मस्ती भी छाने लगी है अब फिजाओं मे।
खूबसूरत तुम लगे जीवन मे जब आये,
खुशबू तेरी आ रही हो जैसे फूलोँ में।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़