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हिंदी ग़ज़ल – विनोद निराश

सोच सोच के गृहणी का ऐसा हुआ हाल है,

हालत हुई खस्ता टमाटर गुस्से से लाल है।

 

चौराहे पर ढेली वाला दे रहा कब से बांग,

बारिस में भीग रहा ले लो ताज़ा माल है।

 

सुन कर आवाज़ आयी घर से दौड़ी- दौड़ी,

सुने भाव जब सब्जी के कैसे हुई बेहाल है।

 

भूल से जैसे ही छू बैठी बेचारी टमाटर को,

बोला कैसे छूआ मुझे तेरी क्या मजाल है।

 

फड़फड़ा के नथुने फुलाये जब टमाटर ने,

गृहणी बोली आखिर किसकी ये चाल है।

 

पहली बार देखा है आधा टमाटर फ्रिज में,

देख समझदारी ऐसी दिल हुआ निहाल है।

 

अपने मन की व्यथा जाके किसको सुनाये,

बिना टमाटर तड़प रही अब सारी दाल है।

 

सेव अनार अदरक नींबू की तो बात छोडो,

तोरी लौकी कददू ने कैसे मचाया धमाल है।

 

हाल क्या बताएं तुम्हे रसोई के, सब कुछ है,

मगर बग़ैर मटर पनीर सूना – सूना थाल है।

 

बोला टमाटर अभी बचा है तांडव मेरा बाकी,

तुम रहो नाराज़ खुशहाल निराश किसान है।

– विनोद निराश, देहरादून

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