हमारी जिंदगी की नीव ही पर्यावरण है ।
दिनो-दिन पेड़ कटना ही प्रलय का अभिकरण है ।।
न डालो मैल नदियों में न काटो पेड़ मानो ।
यही तो रोग को सीधा बुलावे का वरण है ।।
अभी जागे नहीं तो भूमि का नुकसान होगा ।
सभी बीमारियों का मूल पेड़ों का क्षरण है ।।
सभी ये जानते तो हैं नहीं क्यों मानते हैं ।
हुआ पथ भ्रष्ट जाने क्यों हमारा आचरण है ।।
बहुत नक्षत्र हैं ब्रहम्माण्ड में पर हम कहाँ हैं ।
हमें धरती हमारी दे रही अब भी शरण है ।।
अभी कलयुग की दस्तक है धरा पे शोर देखो ।
अनौखे रोग विष कण का तभी आया चरण है ।।
हिमालय क्रोध में आया बढ़ा है ताप उसका ।
किया दूषित हमीं ने स्वर्ग सा वातावरण है ।।
अभी भी वक्त है जागो लगाओ पेड़ पौधे ।
नहीं तो आदमी की जाति का निश्चित मरण है ।।
हरेला पर्व पूरे वर्ष का त्योहार “हलधर “।
धरा पर वृक्ष ही समृद्धि का सच्चा वरण है ।।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून