(1)”चलें “, चलें सदा यहां संभल-संभल कर
है सफर बड़ा ही पथरीला कठोर !
आएंगे ऐसे कई मोड़ यहां पर……,
जहां लग सकती है चोट और ठोकर !!
(2)”संभल “, संभल-संभल कर ख़ुद को संभालें
और बढ़ते रहें मंज़िल की ओर !
ठोकर खाकर यदि गिर पड़ें….,
तो, उठकर चलें पुनः लक्ष्यों की ओर !!
(3)”कर “, कर सकें तो इतना अवश्य करें
औरों को भी चलें देते यहां संबल !
स्वयं को तो होगा रहना सतर्क…..,
पर चलना होगा सदा संभल-संभल !!
(4)”चलें संभल कर “, जीवन सफ़र में
है नहीं आसान यहां पर चलना !
आएंगे पथ में कई रोड़े व्यवधान…..,
फिर भी होगा संभलकर ही बढ़ना !!
(5) हर ठोकर बनाए चले है मजबूत
और दे जाए जीवन को एक नयी दिशा !
हों नहीं कभी यहां पर हताश निराश…..,
लें हर ठोकर से हम एक नई शिक्षा !!
(6) बदल दिया करती हैं ये ठोकरें
अक्सर जीवन की दशा और दिशाएं !
हर ठोकर दे जाती है एक सीख…..,
और चली जाती हैं देकर अनुभव शिक्षाएं !!
(7) आओ बनाएं ठोकरों को गुरु मंत्र
और भूलें नहीं उनसे मिला हर ज्ञान !
सदा जीवन ध्येय को प्राप्त करते चलें….,
और करते रहें जीवन में नव संधान !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान