गुरुदेव !
चेतना की धरातल में पड़ा
हुनर का बीज
आप के कुशल शुभ हाथों में
पनपा हुआ नन्हा सा पौधा
अब बन चुका है
एक छायादार वृक्ष ।
गुरुदेव !
आपके विचारों के मोती,
संस्कारों के जवाहर
आपके अनुभवों का सागर
और आपका ;
एक-एक शब्द
कठिन साधना से होकर
बना गया मुझे
एक साधक ।
गुरुदेव !
आप से मिला
शिक्षा का ख़ज़ाना
ले जा रहा मुझे
सम्पूर्णता की ओर,
आप का आशीर्वाद
कर रहा मुझे तृप्त ।
गुरुदेव !
मुझे जो आपने दिया ज्ञान
वही बोध मेरी अन्धेरी राहों में
भर रहा है रौशनी,
नज़र आ रही है मुझे मंज़िल ।
गुरुदेव !
आप हमेशा रहेंगे
आख़िरी सांस तक
मेरी मधुर स्मृतियों में…
मेरी रूह सदा ऋणी रहेगी
आप के स्नेह के मौसमों की ।
गुरुदेव !
आपने मेरी ख़ामोशियों को आवाज़ बख़्शी
आपने मेरी हथेलियों पर
तक़दीर की हल्की सी लकीरों को उभारा
मुझे दिया सजीव शब्दों का सहारा ।
गुरुदेव !
मैं तो एक मद्धम सी ‘रिश्म’ थी
आपने मिलाया मुझे
उम्मीद के सूरज से
गुरुदेव धन्य हैं आप ।
गुरुदेव!
आप यथार्थ हैं
आप सिद्धार्थ हैं
आप नि:स्वार्थ हैं
आपको नमन् !
– डॉ० जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना , पंजाब