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ग़ज़ल – झरना मथुर

दूर हो तुम दिल तुम्हारे पास है,

हर घड़ी तुमसे मिलन की आस है।

 

रात दिन या हो पहर कोई सनम,

जिस्म में अब बस तिरी ही सास है।

 

हर तरफ अब है नजारा आपका,

यूं लगे कुदरत तिरी ही दास है।

 

आस्मां पे हम बसाये  एक जहां,

संग तेरे अब अज़ब एहसास है।

 

जो नही मुझको मिला आज तक,

उस तलाश में मिरी तू खास है।

 

खुदा का शुक्र “झरना” कर अदा,

काफिरों में इश्क़ का अब वास है।

– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

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