पक्षियों को पालना तो गर्म ये तारें हटा दो ।
भाई चारा साधना तो मज़हबी खारें हटा दो ।।
भूख से लड़ना है तो कर युद्ध भ्रष्टाचारियों से ।
जो विदेशी हाथ में पहले वो तलवारें हटा दो।।
विश्व भर में देख आया एक जैसा आदमी है ।
शांति पथ जाना अगर तो नफरती धारें हटा दो ।।
हड्डियां ही हड्डियां उस महल के नीचे बिछी हैं ।
जागने वाली हैं अब वो जल्द मीनारें हटा दो ।।
झूंठ सच में फासला अब एक गज का भी नहीं है ।
बैल गाड़ी के लिए अब राह से कारें हटा दो ।।
और ज्यादा मत कुरेदो राख में अंगार रहते ।
जल न जाएं मूँछ, दाड़ी पाग, दस्तारें हटा दो ।।
देश किसके बाप का है प्रश्न मुँह खोले खड़ा है ।
आब में तेजाब वाली अब ये बौछारें हटा दो ।।
एक मौका दे रही है कौम फिर सरकार को अब ।
नागरिक कानून में बाधक वो दीवारें हटा दो ।।
नाव में सूराख “हलधर” ये तुझे किसने कहा है ।
छोड़ दो दरियाव में कुछ रोज पतवारें हटा दो ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून