मनोरंजन

आदि-पुरूष – भूपेंद्र राघव

सुन संस्कार के  ब्याधि-पुरुष, ओ! आदि-पुरूष  के  निर्माता,

भाषा, श्रद्धा  में   इसी  तरह,  विष बुझा  तीर  घुसता  जाता।

क्या ज्ञान नहीं हनुमत  बल का

क्या  राम-चरित का  भान नहीं,

क्या माता सीता की  छवि  का

मन  में   किंचित  संज्ञान   नहीं,

थे वसन पूर्ण  माँ  के  तन पर

दृश्यों  में  कितने  क्षीण  किये,

संवाद   वीर    बजरंगी   के

स्तर  से  अति   संकीर्ण  किये,

कोदंड   लिए  असहाय  राम,  देखें  अपहृत सीता माता

सुन संस्कार ….. …….. …… ……. ……… ……… ………..

वह  कथा, पात्र, संवाद,  कृत्य

थोड़ा  तो   ज्ञान   लिया  होता,

वह   देश काल,   संबंध,  नीति

वैसा   परिधान   लिया   होता,

कुछ जान लिया होता प्रभु को

कुछ और तनिक अध्यन करते,

कुछ  बुद्धि  विवेक  लगाते तो

कुछ और  मनन  चिंतन करते,

कुछ  परामर्श करते  पहले,  क्या बुना  और कितना  काता

सुन संस्कार ….. …….. …… ……. ……… ……… ………..

पुष्पकविमान  का  नया  रूप

गादुर से  भी अतिशय  कुरूप,

वह नगर, दहन  से  पूर्व  अंध

मिट गई यथा सब स्वर्ण-धूप

अनुरूप  न  चित्रण सामयिक

अनुरूप   नहीं     संवाद  पात्र

अनुरूप  न   भूषा,  वेश, केश

बिक गयी समसि धन हेतु मात्र

बौरा  जाती  है  अवलेखा,  मुख  कनक  धातु  से मड़वाता

सुन संस्कार ….. …….. …… ……. ……… ……… ………..

क्या  इसी  निर्रथक  भाषा  से

संवर्द्धित     होंगे      संस्कार,

क्या  आने   वाली  पीढी   में

रोपित  होंगे शुभ शुभ  विचार,

देवों  के  प्रति  क्या इन्हें  देख

मन   में  उपहास  न  आएगा,

अनुसरण अगर यह सब होगा

क्या जहर  नहीं  घुल  जाएगा,

आदर्श  जगत  के  महावीर, प्रभु राम, सिया, लक्षमण भ्राता

सुन संस्कार ….. …….. …… ……. ……… ……… ………..

लगता  है  जानबूझकर  तुम

साजिश में  फँसे, फसाये  हो,

विघटन  हो  धर्म-सनातन  में

संभव   षड्यंत्र    लगाए   हो,

असफल  होंगे   सारे  प्रयास

यह  राष्ट्र  सनातन  रक्षक  है,

फन  उसका कुचला  जाएगा

जो  आस्तीन   का  तक्षक है,

जलकर  पलभर  में  राख  बने,  राघव  से जो भी  टकराता

सुन संस्कार ….. …….. …… ……. ……… ……… ………..

– भूपेंद्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश

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