रिश्तों का आधार, भाव अपनापन होता।
अंतस में अनुराग, नेह पावन ही बोता।।
सद्भावों के गीत, अमरता तब ही पाते।
भेद भाव के खार,अगर जड़ से मिट जाते।।
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जीवन का आधार, पिता माता गुरु होते।
कर्म वीर का भाव, हमारे उर में बोते।।
उनके प्रति सम्मान, हृदय में हरदम रखना।
अगर आपको स्वाद, सफल जीवन का चखना।।
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शुचि परिणय की रीति,कलंकित क्यों हम करते।
संचालक पर बोझ, अनावश्यक ही धरते।।
क्यो हम दान दहेज, दिखावे पर मरते हैं।
मन का मिलन विवाह, सत्य भूला करते हैं।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश