यार मेरा बड़ा होनहार आदमी,
तंग करता लगे होशियार आदमी।
अब कहाँ रह गया जग वो नेकी भरा,
मन में रखता बड़ा वो विकार आदमी।
आज पूछो न हमसे कुई बात तुम,
क्यो बना आज इंसा कटार आदमी।
पास उसके रहे भीड़ सब लोग की,
फिर भी तन्हाइयोँ का शिकार आदमी।
हर तरफ अब दिखे जुल्म का अब कहर,
आ बचा ले जरा रोजगार आदमी।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़