खूब बजी है ताली मुझ पर, आज इस महफ़िल में।
जब सुनाया मैंने कोई गीत, हिन्दी में इस महफ़िल में।।
क्यों करुँ मैं शर्म फिर, अपनी बात हिन्दी में कहने में।
एक रोशनी और बहार है, यह हिन्दी मेरी मंजिल में।।
नाम कमाया हिन्दी से, और प्यार है अंग्रेजी से।
भूल गए हम उसको, सीखे बोलना हमने जिससे।।
वाह भाई वाह,——————————-(4)
नाम कमाया हिन्दी से————————।।
नहीं हिन्दी करो हिन्दी की, पढ़ – लिखकर तुम ऐसे।
नहीं देती प्यार तुम्हें हिन्दी, तुम नाम कमाते तब कैसे।।
भरते हो पेट तुम हिन्दी से, लगते हो गले अंग्रेजी से।
वाह भाई वाह,——————————-(4)
नाम कमाया हिन्दी से————————-।।
हिन्दी से ही पहचान है, संसार में हिन्दुस्तान की।
यह हिन्दी ही हकदार है, अपनी शान- सम्मान की।
फिर भी आती है हमको शर्म,हिन्दी में बात करने से।
वाह भाई वाह , ——————————-(4)
नाम कमाया हिन्दी से—————————।।
यह प्यार, दोस्ती, संस्कार, हिन्दी ने हमको सिखाया है।
किसी मंच और महफ़िल में, हिन्दी ने मान दिलाया है।।
हिन्दी की तारीफ में ताली, कतराते हम हैं बजाने से।
वाह भाई वाह,———————————–(4)
नाम कमाया हिन्दी से—————————–।।
– गुरुदीन वर्मा आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां (राजस्थान)