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स्वर्ग क्या अपवर्ग क्या? – अनुराधा पांडेय

आज तक महका रहा मन ।

वो पुहुप चुंबन तुम्हारा ।

 

दूर रहकर भी न तुम हो

दूर मुझसे एक क्षण भी ।

पास मेरे है न मेरा ,

देह मन का एक कण भी ।

ले उड़ा इनको हठीला…

याद का स्यंदन तुम्हारा ।

वो पुहुप चुंबन तुम्हारा।

 

सोचती हूँ घन तिमिर में,

राग दीपक यदि न मिलता ।

सूख जाता मूल पंकज ,

मन मुकुर निश्चित न खिलता ।

दे रहा है जीवनी प्रिय!

प्रेम आलम्बन तुम्हारा ।

वो पुहुप चुंबन तुम्हारा।

 

मध्य में मेरे तुम्हारे,

यों न दिखती डोर कोई।

किन्तु सबलित हो बँधा है,

इस हृदय का छोर कोई ।

द्वैत पर दिखता नहीं है-

सूक्ष्म अति बंधन तुम्हारा ।

आज तक महका रहा मन,

वो पुहुप चंदन तुम्हारा ।

– अनुराधा पांडेय, द्वारिका, दिल्ली

 

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