मनोरंजन

प्रदूषण – झरना माथुर

हम शहर पे शहर बस बसाते गये,

मौत के मुंह में खुद समाते गए। .

 

दिल में  चाहत थी आगे बढ़े और हम,

मां का  धानी आंचल लुटाते गये।

 

अब कहां पक्षियों का नशेमन यहां,

हम शजर दर शजर जो कटाते गये।

 

छा गया आसमां पे धुआं ही धुआं

जिस तरह कारखाने बनाते गये।

 

सूखती जा रही है नदियां सभी,

वृक्षो,जंगल सभी को मिटाते गये।

 

बढ़ रहा प्रदूषण अशुद्ध है फिजा,

फर्ज  जो है ज़मी का भुलाते गये।

 

वक्त है आज भी तू संभल जा बशर,

जख्म कुदरत के झरना रुलाते गये।

झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

दहक जाए ना फिर अनल – सविता सिंह

newsadmin

गीत – मधु शुक्ला

newsadmin

मानवता मुस्काये – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

Leave a Comment