स्वप्न सम अब तो स्वयंवर हो गये,
बेटियों के भाग्य प्रस्तर हो गये।
कद्र गुण की है नहीं संसार में,
ब्याह अब व्यापार सागर हो गये।
जेब में था जिन पिताओं की वजन,
प्रेम से दामाद अफसर हो गए।
छीन कर हक पुत्रियों का क्या मिला,
बेटियों के बाप चाकर हो गये।
शादियों का अर्थ ‘मधु’ भूलो नहीं,
एक गलती से मकां घर हो गये।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश