उफ़ कहीं अब खता न हो जाये,
आपका ही नशा न हो जाये।
जब से उल्फत बसी निगाहों में,
प्रेम मेरा खुदा न हो जाये।
तुझ को सांसों में जो बसाया है,
प्यार का सिलसिला न हो जाये।
हम को इतना न सनम तडपाओ,
घुल के तुझ में फ़ना न हो जाये।
हम जो सरकार पे लिखेंगे गर,
तो सियासत ख़फ़ा न हो जाये।
उनका महफिल में मुस्कुराना वो,
“ज्योति” दिल की दवा न हो जाये।
-ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश