होठों को छुआ, और अंग में मिली,
सुबह की ताजगी देके गयी,
मन हर्षित हुआ, रूप पुलकित हुआ,
चाय तुम मेरी चाहत बन गयी।
तुम मेरी,खुशी और गम में मिली,
तुम मेरी जिंदगी में घुल सी गयी,
तीज- त्यौहार हो, या रूठना मनाना,
चाय तुम यारों की महफिल बन गयी।
हम सबको इसी की, ताकत है मिली,
आसाम ड़ार्जिलिंग की शान बन गयी,
पीके तुम्हें लोग, क्या-क्या बन गये,
चाय तुम देश की ताकत बन गयी।
– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड