मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।
अपने ज़ख्मों पर रोता हूँ ,मेरे दुख का ये पैमाना ।।
कोई दल आया हिला गया ,कोई दल आया झुला गया ।
आतंकी कुत्तों का टोला ,संसद तक शोणित पिला गया ।
सारे दल मेरे शोषक हैं ,सब मुझ पर दांव लगाए है ,
शिवलिंग मस्ज़िद में कैद पड़े , मैं देख देख तिलमिला गया ।
अधिकारों के सब सौदागर , कर्तव्यों का अहसास नहीं ,
सत्तर सालों से झेल रहा ,घोटालों का ताना बाना ।।
मैं हूँ भारत का संविधान, दुनिया में जाना पहचाना ।।1
संसोधन होते बार बार, जिनकी सीमा का अंत नहीं ।
हर मौसम ही वीराना है ,मेरे घर खिला वसंत नहीं ।
सौ से भी अधिक घाव देखो ,मेरी यह जर्जर काया है ,
लगता है अब तो न्यायालय ,संसद भी मेरे कंत नहीं ।
मुझ पर ही धूल उड़ाते हैं ,कुछ जाति धर्म के गठबंधन ,
रोजाना घेर रहा मुझको ,तूफान मज़हबी दीवाना ।।
मैं भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।2
मुझको धर्म हीन बतलाकर , संसद ने निरपेक्ष बनाया ।
बिना आत्मा के क्या कोई ,जीवित रह सकती है काया ।
मेरी नीव खोदने वाले ,पास खड़े हैं जीजा साले ,
उस सन्यासी को फिर लाओ ,जिसने कुछ सम्मान दिलाया ।
सोच समझ मतदान करो सब ,मेरा इतना मान करो अब ,
भारत फिर से होवे महान , मेरा बस ये ही परवाना ।।
मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।3
मेरी चाहत इतनी सी है ,दुनिया में अपना नाम करें ।
झगड़ें ना एक दूसरे से ,सब अपना अपना काम करें ।
मेरा तन बेसक घायल है ,पर मन सरहद पर रहता है ,
आरोप मढ़ें ना सेना पर ,ना बिना बात बदनाम करें ।
इक लाल दुशाले में “हलधर” , सीमा पर डायन घूम रही ,
बासठ जैसी गलती ना हो , दोबारा ना हो पछताना ।।
मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून