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गीत – जसवीर सिंह हलधर

मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।

अपने ज़ख्मों पर रोता हूँ ,मेरे दुख का ये पैमाना ।।

 

कोई दल आया हिला गया ,कोई दल आया झुला  गया ।

आतंकी कुत्तों का टोला ,संसद तक शोणित पिला गया ।

सारे दल मेरे शोषक हैं ,सब मुझ पर दांव लगाए है ,

शिवलिंग मस्ज़िद में कैद पड़े , मैं देख देख तिलमिला गया  ।

अधिकारों के सब सौदागर , कर्तव्यों का अहसास नहीं ,

सत्तर सालों से झेल रहा ,घोटालों का ताना बाना ।।

मैं हूँ भारत का संविधान, दुनिया में जाना पहचाना ।।1

 

संसोधन होते बार बार, जिनकी सीमा का अंत नहीं ।

हर मौसम ही वीराना है ,मेरे घर खिला वसंत नहीं ।

सौ से भी अधिक घाव देखो ,मेरी यह जर्जर काया है ,

लगता है अब तो न्यायालय ,संसद भी मेरे कंत नहीं ।

मुझ पर ही धूल उड़ाते हैं ,कुछ जाति धर्म के गठबंधन ,

रोजाना घेर रहा मुझको ,तूफान मज़हबी दीवाना ।।

मैं भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।2

 

मुझको धर्म हीन बतलाकर ,  संसद ने निरपेक्ष बनाया ।

बिना आत्मा के क्या कोई ,जीवित रह सकती है काया ।

मेरी नीव खोदने वाले ,पास खड़े हैं जीजा साले ,

उस सन्यासी को फिर लाओ ,जिसने कुछ सम्मान दिलाया ।

सोच समझ मतदान करो सब ,मेरा इतना  मान करो अब ,

भारत फिर से होवे महान , मेरा बस ये ही  परवाना ।।

मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।3

 

मेरी चाहत इतनी सी है  ,दुनिया में अपना नाम करें ।

झगड़ें ना एक दूसरे से ,सब अपना अपना काम करें ।

मेरा तन बेसक घायल है ,पर मन सरहद पर रहता है ,

आरोप मढ़ें ना सेना पर ,ना बिना बात बदनाम करें ।

इक लाल दुशाले में “हलधर” , सीमा पर डायन घूम रही ,

बासठ जैसी गलती ना हो , दोबारा ना हो  पछताना ।।

मैं हूँ भारत का संविधान ,दुनिया में जाना पहचाना ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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