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भूल पाओ तो – अनुराधा पाण्डेय

शब्द यह कहना बहुत आसान प्रियव्रत!

भूल पाओ…. तो मुझे अब भूल जाना…!

 

हाय! हँसकर एक क्षण में कह गया तू

स्वप्न भी क्या तथ्य होता ,बचपना है

प्रेम लहरों पर बना होता घरौंदा ,

गेह आखिर रेत से ही तो बना है ।

व्यर्थ ढ़हती रेत में पग क्या जमाना ?

भूल पाओ तो मुझे अब भूल जाना ।

 

क्या कहूँ अति क्षोभ होता किन्तु सुन ले!

वाह! तूने  खूब पहचाना प्रणय को,

पृष्ठ को तू काश! पढता एक क्षण भी,

देखता तू  झाँक कर तो इस हृदय को

प्रेम का अभिप्राय अर्पण,कुछ न पाना ।

भूल पाओ तो मुझे अब भूल जाना ।

 

दूर कितना भी रहे तू आज प्रियव्रत।

नित्य तेरी  याद में केंन्द्रित रहूँगी।

लोचनों में कर सतत तुझको समाहित,

अंक में तुझको समाए बस बहूँगी ।

है तनिक असमर्थ हृद यह आज माना…

भूल पाओ तो मुझे अब भूल जाना….

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका।, दिल्ली

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