बता तेरी क्या रजा है,
मुझ से क्यूँ खफा है।
दिल मुन्तज़िर तेरा,
पर तुझे हुआ क्या है।
गरूर वाज़िब न इतना,
इंसां है न कोई खुदा है।
न देख तंग नज़र से,
अपनी भी तो हवा है।
गर भूल हुई तो क्या,
इश्क़ भी इक खता है।
बेशक फेर ले नज़रे,
हमारे भी मेहरबां है।
तू आये न आये पर,
निराश अभी रुका है।
– विनोद निराश, देहरादून