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माता भाग्य विधाता (आल्ह छंद ) – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

माँ जननी माता या माई, मदर बोलता है संसार।

अलग बोलियों भाषाओं में, दिए नाम हैं कई हजार।1

 

सबके नयनों में बसता है, जन्मदात्रि का रूप अनूप,

गर्भ रखा, निज दूध पिलाया, जग माने माँ का उपकार।2

 

माँ के रोम-रोम में बसता, अपनी संतति के प्रति नेह,

अपनी संतानों से माता, हरदम करती लाड़-दुलार।3

 

खेल-खेल में संस्कारों को, पोषित करती है हर मातु,

बच्चे उत्तम बनें नागरिक, सिखलाती जग के व्यवहार।4

 

गलत-सही का भेद बताती, उचित समय पर देती ज्ञान,

उँगली पकड़ चलाती शिशु को, सुदृढ नींव करती तैयार।5

 

संतति को जब ठोकर लगती, माँ के मुख से निकले आह,

विपदा में जब बच्चे पड़ते, माता की ही करें पुकार।6

 

सारे राज छुपाती दिल में, सदा सहेजे उनके भेद,

इसीलिए बच्चे भी माँ से, साझा करते सभी विचार।7

 

कोई कीमत नहीं लग सके, जननी की ममता अनमोल,

मातृ रूप में मिला सभी को, दाता का अनुपम उपहार।8

 

मैया के सम्मुख सब बच्चे, नहीं उम्र से पड़ता फर्क,

दिल से नमन करें जननी को, और करें हम दिल से प्यार।।9

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

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