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कविता – जसवीर सिंह हलधर

कलिंद शिखर से निकली हूँ, जगती की अमर निशानी हूँ ।

यम की बहना कहलाती हूँ, नगपति की सुता सयानी हूँ ।।

मैं देवलोक की एक परी ,यमनोत्री से भागी आयी ।

मैं ही अपने पावन जल से,धरती पर  खुशहाली लायी ।।

द्वापर में मैंने देखा है, कौरव ,पांडव का युद्ध यहां ।

गीता उपदेश सुने मैंने ,देखा है व्यास प्रबुद्ध यहां ।।

जब भी अतीत के गहवर से ,यादें आकर टकराती हैं ।

अब भी मेरी दूषित लहरें ,वह सोच सोच इतराती हैं ।।

इतिहास गवाही देता है ,ऋषियों ने कितना मान किया ।

हूणों ,मुगलों अफगानों ने जी भर मेरा जलपान किया ।।

मैंने देखा आदित्य राज ,नृप प्रभाकर वर्धन देखा ।

वीरों का संगर देखा है ,हूणों का भी मर्दन देखा ।।

मंगोल और अफगानों का ,बनता देखा आवास यहां ।

देखा है मैंने भारत का ,धूमिल होता इतिहास यहां ।।

जन्नत से भी सुंदर नगरी , देखी है इन्द्रप्रस्थ बनते ।

देखा सौंदर्य द्रोपदी का , भाई ,भाई रंजिस ठनते ।।

माधव की क्रीड़ा देखी हैं ,देखा मामा का बध करते ।

अपनी आँखों से देखा है ,पग नाग कालिया पर धरते ।।

राजाओं का बचपन देखा ,देखा है वानप्रस्थ मैंने ।

संन्यास बहकते देखा है ,देखा है श्रेष्ठ गृहस्थ मैंने ।।

जाने कितने सम्राट यहां ,मेरी रेती में सोये हैं ।

जाने कितनी ललनाओं ने ,अपने भरतार बिछोये हैं ।।

रघुवंश और परमारों की ,अब भी मुझमें हुंकार बसी ।

तोमर ,चौहान , लुहाचों की ,तकवारों की टंकार बसी ।।

देखा है मैंने मिहिर भोज ,राजा अनंग भी देखा है ।

रेती के कण कण में तोमर,चौहान वंश का लेखा हैं ।।

देखा मैंने तैमूर लंग , देखा है गौरी, गजनी को ।

देखे मंगोली हमलावर , देखा शैतानी रजनी को ।।

तैमूर लंग के कर्मों का , सब चिट्ठा काला देखा है ।

हरवीर गूलिया का उसकी , छाती में भाला देखा है ।।

जाने कितने ही मुगलों को ,मांटी में गलते देखा है ।

तोमर, चौहान,कछारों को , छाती पर जलते देखा है ।।

जाने कितने बलवान वीर , मेरी धारा में समा गए ।

शोणित से शुद्ध किया मुझको , पौगम कौम को थमा गए ।।

कुछ गद्दारों , मक्कारों ने ,अपमान किया मेरे जल का ।

आगरा , इन्द्रप्रस्थ , बृज में , लेखा कलयुग के पल पल का ।।

मुगलों के  शासन तक मेरी, धारा निर्बाध रवानी थी ।

अंग्रेजी शासन में भी मैं ,प्रदूषण मुक्त सुहानी थी ।।

आज़ाद हिंद के बच्चों ने , दूषित कर दी मेरी काया ।

मुझमें इतना विष घोल दिया , धूमिल है अब मेरी छाया ।।

जल नहीं आचमन के लायक , यह राज किसे अब बतलाऊँ ।

मैं स्वर्ग लोक की देव सुता,कैसे अपना मुख दिखलाऊँ ।।

मेरे कारण पश्चिम यू पी ,हरियाणे में है हरियाली ।

मेरा निर्बाध गमन बाँटा , यमुना कैनाल बना डाली ।।

इससे तो क्षुब्ध नहीं थी मैं ,क्यों बांध बना अवरुद्ध किया ।

मल मूत्र बहाता है मुझमें , मानव ने मुझको क्रुद्ध किया ।।

उद्योगों के केमिकल से , दूषित मेरी परछाई है ।

पीड़ा अपनी समझाने को ,कवि को आवाज लगाई है ।।

मानव ने इतने घाव दिए , मेरा अंतस घबराया है ।

सपने में आकर “हलधर” को ,तब अपना दर्द बताया है ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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