कलिंद शिखर से निकली हूँ, जगती की अमर निशानी हूँ ।
यम की बहना कहलाती हूँ, नगपति की सुता सयानी हूँ ।।
मैं देवलोक की एक परी ,यमनोत्री से भागी आयी ।
मैं ही अपने पावन जल से,धरती पर खुशहाली लायी ।।
द्वापर में मैंने देखा है, कौरव ,पांडव का युद्ध यहां ।
गीता उपदेश सुने मैंने ,देखा है व्यास प्रबुद्ध यहां ।।
जब भी अतीत के गहवर से ,यादें आकर टकराती हैं ।
अब भी मेरी दूषित लहरें ,वह सोच सोच इतराती हैं ।।
इतिहास गवाही देता है ,ऋषियों ने कितना मान किया ।
हूणों ,मुगलों अफगानों ने जी भर मेरा जलपान किया ।।
मैंने देखा आदित्य राज ,नृप प्रभाकर वर्धन देखा ।
वीरों का संगर देखा है ,हूणों का भी मर्दन देखा ।।
मंगोल और अफगानों का ,बनता देखा आवास यहां ।
देखा है मैंने भारत का ,धूमिल होता इतिहास यहां ।।
जन्नत से भी सुंदर नगरी , देखी है इन्द्रप्रस्थ बनते ।
देखा सौंदर्य द्रोपदी का , भाई ,भाई रंजिस ठनते ।।
माधव की क्रीड़ा देखी हैं ,देखा मामा का बध करते ।
अपनी आँखों से देखा है ,पग नाग कालिया पर धरते ।।
राजाओं का बचपन देखा ,देखा है वानप्रस्थ मैंने ।
संन्यास बहकते देखा है ,देखा है श्रेष्ठ गृहस्थ मैंने ।।
जाने कितने सम्राट यहां ,मेरी रेती में सोये हैं ।
जाने कितनी ललनाओं ने ,अपने भरतार बिछोये हैं ।।
रघुवंश और परमारों की ,अब भी मुझमें हुंकार बसी ।
तोमर ,चौहान , लुहाचों की ,तकवारों की टंकार बसी ।।
देखा है मैंने मिहिर भोज ,राजा अनंग भी देखा है ।
रेती के कण कण में तोमर,चौहान वंश का लेखा हैं ।।
देखा मैंने तैमूर लंग , देखा है गौरी, गजनी को ।
देखे मंगोली हमलावर , देखा शैतानी रजनी को ।।
तैमूर लंग के कर्मों का , सब चिट्ठा काला देखा है ।
हरवीर गूलिया का उसकी , छाती में भाला देखा है ।।
जाने कितने ही मुगलों को ,मांटी में गलते देखा है ।
तोमर, चौहान,कछारों को , छाती पर जलते देखा है ।।
जाने कितने बलवान वीर , मेरी धारा में समा गए ।
शोणित से शुद्ध किया मुझको , पौगम कौम को थमा गए ।।
कुछ गद्दारों , मक्कारों ने ,अपमान किया मेरे जल का ।
आगरा , इन्द्रप्रस्थ , बृज में , लेखा कलयुग के पल पल का ।।
मुगलों के शासन तक मेरी, धारा निर्बाध रवानी थी ।
अंग्रेजी शासन में भी मैं ,प्रदूषण मुक्त सुहानी थी ।।
आज़ाद हिंद के बच्चों ने , दूषित कर दी मेरी काया ।
मुझमें इतना विष घोल दिया , धूमिल है अब मेरी छाया ।।
जल नहीं आचमन के लायक , यह राज किसे अब बतलाऊँ ।
मैं स्वर्ग लोक की देव सुता,कैसे अपना मुख दिखलाऊँ ।।
मेरे कारण पश्चिम यू पी ,हरियाणे में है हरियाली ।
मेरा निर्बाध गमन बाँटा , यमुना कैनाल बना डाली ।।
इससे तो क्षुब्ध नहीं थी मैं ,क्यों बांध बना अवरुद्ध किया ।
मल मूत्र बहाता है मुझमें , मानव ने मुझको क्रुद्ध किया ।।
उद्योगों के केमिकल से , दूषित मेरी परछाई है ।
पीड़ा अपनी समझाने को ,कवि को आवाज लगाई है ।।
मानव ने इतने घाव दिए , मेरा अंतस घबराया है ।
सपने में आकर “हलधर” को ,तब अपना दर्द बताया है ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून