मनोरंजन

छपास – संगम त्रिपाठी

जिस कलम की ताकत से

अंग्रेजी शासन कभी हिलती थी,

कविताओं के दम से वीरों के

सीने में ज्वाला जो धधकती थी।

आज कलम वही सच में

भोथी हो गई कहां गई वो धार,

सम्मान मंच और छपास की

बीमारी पर होते है अब रार।

दिशा हीन हो गई व्यवस्था

और कलमकार है मौन,

क्रांतिकारी इतिहास की

गाथा अब लिखेगा कौन।

चंद चाटुकार अवसरवादी

बहुरुपिए हैं अब भैया पहरेदार,

थक हार कर सो गया अब

बेचारा वतन का चौकीदार।

कवि संगम त्रिपाठी

जबलपुर, मध्यप्रदेश

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