संतान की खातिर शिला भी तोड़ती है माँ ।
अपने लिए कुछ भी कभी क्या जोड़ती है माँ ।।
बेटे भले दो चार हों या तीन बेटियां ।
करती सभी को प्यार वो देती है रोटियां ।
क्या भूख से रोता किसी को छोड़ती है माँ ।।1
बच्चे सदा खुशहाल हों रोती है आह में ।
गर आँधियाँ आयें कभी बच्चों की राह में ।
तूफान के भी होंसलों को मोड़ती है माँ ।।2
देखा नहीं हमने कभी ईश्वर जमीन पर ।
शायद उसी का रूप मां ऐसा यकीन कर ।
लगता उसी की बागवानी गोड़ती है माँ ।।3
क्या जानते थे हम यहाँ दुनियाँ जहान को ।
उसने दिए हैं पंख ये ऊंची उड़ान को ।
अज्ञानता का घट हमारा फोड़ती है माँ ।।4
उसने लुटाया चैन भी दिन और रात का ।
वो दूध जो “हलधर” पिये है कर्ज मात का ।
गर्दन बुरे हालात की झकझोड़ती है माँ ।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून