दिल को लूटे उफ़ शराफत आपकी,
वाह क्या कहने अदालत आपकी।
जब चला जादू नज़र का आपके,
कर गई आखें शरारत आपकी।
प्यार से हाथों को थामा हमसफ़र,
है करम हम पर इनायत आपकी।
जब सुने हमदम तेरी आवाज को,
उफ़ अदा कैसी शरारत आपकी।
जिंदगी की राह मुश्किल जब लगा,
काम आई ये किफ़ायत आपकी।
इस नज़र को आस तेरी ही लगे,
है लगी कैसी ये आदत आपकी।
है मुक्कमल आपसे उल्फ़त मेरी,
दिल ये चाहे बस हो चाहत आपकी।
इस जहां के पैतरे जाने न हम,
बस मिले मुझको हिफ़ाजत आपकी।
सर मेरा रब की इबादत में झुके,
“ज्योति” चाहे बस हो रहमत आपकी।
ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा , उत्तर प्रदेश