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छंद (रूप हरण घनाक्षरी) – जसवीर सिंह हलधर

धरा  हो गयी मगन , देख मेघों  का  चलन ।

हर्षे  तरु  पक्षी  जन,  देख शीतल  बयार ।।

 

संध्या का छोड़ विषाद ,घटा दे रही प्रसाद ।

चखे बरखा का स्वाद , भूमि पाये उपहार ।।

 

फूल  फल  पावें  रंग , हरी  हरी  दूब  संग ।

जीव  भरते  उमंग , छोड़  सुस्त  व्यवहार ।।

 

मुझे नहीं  सत्य ज्ञान , बस  इतना है भान ।

सिंधु से  मिला  ये दान , नगपति  उपकार ।।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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