धरा हो गयी मगन , देख मेघों का चलन ।
हर्षे तरु पक्षी जन, देख शीतल बयार ।।
संध्या का छोड़ विषाद ,घटा दे रही प्रसाद ।
चखे बरखा का स्वाद , भूमि पाये उपहार ।।
फूल फल पावें रंग , हरी हरी दूब संग ।
जीव भरते उमंग , छोड़ सुस्त व्यवहार ।।
मुझे नहीं सत्य ज्ञान , बस इतना है भान ।
सिंधु से मिला ये दान , नगपति उपकार ।।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून