मुक्त कविता से कभी हम, गीत को डरने न देंगे ।
युग बहे बेशक विरोधी , छंद को मरने न देंगे ।।
चाँद तारे आसमां पर ,घूमते है एक लय में ।
मुक्त कोई भी नही है ,व्योम गंगा के निलय में ।
घूमती धरती हमारी ,अक्ष पर क्या जानते हो ,
सत्य के इस तथ्य को हम,मिथ्य से वरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम ,गीत को डरने न देंगे ।।1
मुक्त अक्षर आचरण को ,साधने को गद्य कहते ।
भावना को छंद लय में ,बांधने को पद्य कहते ।
पाणिनी पिंगल सरीखे, देव बटवारा किये है ,
बेतुके आधार पर इसका हरण करने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम ,गीत को डरने न देंगे ।।2
छंद सत्यम और सुंदर, साथ शिव का आवरण है ।
नाद है यह ब्रह्म का ये ,वेद वाणी का चरण है ।
भाव के संवाद का पौधा हमारी जान है ये ,
पुष्प तरु से बिन खिले हम ,धूप में झरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम ,गीत को डरने न देंगे ।।3
शब्द संयोजन सृजन में, छंद ही पहला कदम है ।
नियम बिन अक्षर मिलाना ,गद्य है भ्रम है छदम है ।
प्राण का भी नाद से संबंध सास्वत है सहज है ,
ज्ञान को अज्ञान के तालाब में तरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम ,गीत को डरने न देंगे ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून