बुद्धम् शरणम् गच्छामि
प्रयास किए बहुत खुद को
बुद्ध की शरण में ले जाऊं
अप्प दीपो भव: का संदेश
क्या मैं आत्मसात कर पाई?
त्याग दिया महल राजसी, वैभव
बहुत छोटी सी बाल उम्र में
मैं तो घर संसार में लिप्त
छोड़ने का ख्याल भी न कर पाई?
तथागत बोले ,स्वयं को खोजो
मैं तो दूसरों में ही खोजती रही
मैं तो घर परिवार का मोह
लेश मात्र भी छोड़ न पाई?
चले गए बुद्ध पत्नी को छोड़
सुंदर अबोध पुत्र को त्याग
मैं संतान के मोह में बंधी
छोड़ने का सोच भी न पाई?
महात्मा बुद्ध ने ज्ञान दिया ,
परम धर्म को अपनाओ
इच्छाओं, इंद्रियों को जीतो
मैं तो जिह्वा का स्वाद भी न छोड़ पाई?
धैर्य संयम शक्ति का पाठ पढ़ाया
दुश्मनों को भी गले लगाया
पर मैंने तो वाद-विवाद में
खुद को अग्रणी पाया
आसान बहुत है कहना आज
चले हम भी बुद्ध की शिक्षाओं के साथ
परंतु बुद्ध बनना कठिन डगर है
त्याग नहीं सकते हम धन वैभव का मोह
तो हम कहां बनेंगे बुद्ध?
केवल बुद्ध जयंती पर कर याद
नहीं होता कर्तव्य का निर्वहन
आज यदि कुछ अंश हमारे भीतर
आ जाए बुद्ध की शिक्षाओं का
तो शायद सृजन कर पाएं
एक बेहतर,परिष्कृत समाज का
– रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चण्डीगढ़