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पिता परमात्मा है – अशोक यादव

तपती गर्मी में पिता का खून, पसीना बन टपकता है।

हथेली और पैरों के छाले, दुःख की गाथा कहता है।।

 

अपनों के भविष्य बनाते, मिट गयी हाथों की रेखाएँ।

रात में दर्द से चीख उठती है, मन की सारी आशाएँ।।

 

जवानी में बुढ़ापा आया, सफेद हो गये शरीर के बाल।

पेट की आग बुझाने में, खुद का नहीं है कुछ ख्याल।।

 

बह रही है आँखों से आँसू, वजन से फुल रही है साँसें।

चेहरे पर मेहनत की झुर्रियाँ, पीड़ा की करती है बातें।।

 

जिम्मेदारी का भारी बोझ से, झुक गयी कमर की हड्डी।

जीवन भर काम करके, कुटुंब समर्पित नोटों की गड्डी।।

 

इच्छाओं को दफन कर, अपनी खुशी बच्चों को दिया।

प्यार भरी मीठी बातें करके, सबके मन को मोह लिया।।

 

नींव के पत्थर बनकर, घर को स्वर्ग से सुंदर सजाया।

नैतिकता और संस्कार पूँजी, सकर्म का पाठ पढ़ाया।।

 

देख तुम्हारे त्याग और बलिदान को करता हूँ प्रणाम।

मुझे जन्म देने वाले परमपिता परमात्मा तुझे सलाम।।

– अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

 

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