गूँजी जब पहली किलकारी, हुआ तभी ममता का ज्ञान,
ज्ञात हुआ जननी की दौलत, होती है शिशु की मुस्कान।
सूरज, चंदा, तारे फीके, क्यों लगते हैं इसका बोध,
छुअन बाल हाथों की देती, बन जाती है माँ की जान।
गृह उपवन को करे प्रकाशित, छोटा बालक बनकर सूर्य,
मधुरिम भावों के सागर में, घरवाले खूब करें स्नान।
त्याग, क्षमा, ममता का सागर, उर में लेने लगे हिलोर,
शिशु की संगति उपजाती है,मन में कोमल भाव महान।
वाद्य यंत्र की तान मनोहर, और सुरीले मीठे गीत,
आनंदित करते हैं लेकिन, किलकारी सम बनी न तान।
– मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .