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क्या प्रेम का सम्मान होगा? – अनुराधा पांडेय

प्रिय! प्रणय पथ कंटकित है,

है सतत आभास इसका

किन्तु पीछे लौटना क्या

प्रेम का सम्मान होगा?

 

प्रेम में पाएँ अमिय या

लब्ध हो चाहे गरल ही ।

बिन गणन के प्रीत पथ में ,

पेय हैं दोनो तरल ही ।

रंच हो यदि पान में भय ,

ईश का अपमान होगा ।

किन्तु पीछे लौटना क्या

प्रेम का सम्मान होगा ?

 

बुद्धि से होते न चालित,

राग मय अम्लान ये पग ।

पाँव हो लथपथ रुधिर से ,

कोटि शूलों से भरा मग ।

शूल यदि गिनते चुभे जो ,

बुद्ध पथ सुनसान होगा ।

किन्तु पीछे लौटना क्या

प्रेम का सम्मान होगा?

 

सत्य पथ में पीर में भी,

हर्ष का उन्वान होता ।

सत् पथिक यह जानते हैं ,

प्रेम ही भगवान होता ।

प्रीत देगी ही अमरता ,

जब हृदय लयमान होगा।

किन्तु पीछे लौटना क्या

प्रेम का सम्मान होगा ?

– अनुराधा पाण्डेय (अनु), द्वारिका, दिल्ली

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