मैं लिखूंगी
हाँ तुम्हारी…
मूक सूचनायें…
तुम्हारी कविता…
स्वर रहित..
और शब्द तुम्हारे…
अक्षर रहित…
जो नही बोलते हो..
फिर भी…
एक शोर है…
मौन का…
मैं लिखूंगी..
वें मधुर धुनें
जो तुम्हारी साँसो मे हैँ…
जरा सुनो…
इनकी शान्त धुन…
जो भरी हैं…
धडकनों मे तेरी…
जो सुनाई देती है…
मुझको..
हौले हौले…
✍️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर