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सच चुप-चुप क्यूँ बना रहता – सुनील गुप्ता

सच चुप-चुप क्यूँ बना रहता

खामोशी से सब बयां करता  !

झूठ के घने बियाबान जंगल में…..,

सच दिए की लौ के समान टिका रहता !1!!

 

चल दिए छोड़ के सच का सब साथ

झूठ का कारवाँ आगे बढ़ता ही रहा !

फिक्र नहीं उसे पीछे छूट जाने की …….,

वह तो नेकनियति सदा बनाए रहा !!2!!

 

रह गया सच यहां पे निपट अकेला

और झूठ महफिलें सजाए फिरता ही रहा !

आखिर क्या कहें ये सच भी समझे……,

झूठ बिना सिर पैर के दौड़ता ही रहा !!3!!

 

है ये किस्मत की अपनी ही बात

कि, झूठ महलों में रहा निवास करता  !

सच ने पहने फटे पैबंदी लिबास……,

टूटी फूटी कुटिया में वह बसर करता  !!4!!

 

वक़्त के हाल पे छोड़ सच आगे बढ़ा

झूठ ने थामें हों चाहे हाथ कितने   !

क्या बढ़ा या फिर कुछ यहां है घटा…….,

सच ने ना देखा कभी पीछे मुड़के  !!5!!

 

रही जीवन भर सच के संग तसल्ली

झूठ के भ्रम में कभी फँसा ही नहीं  !

ओढे हुए हो वो चाहे झूठी ही हंसी…….,

सच के आगे रही बेदम, टिकी ही नहीं !!6!!

 

सच चुप ही चुप बना रहा सदा से

झूठ ने ढ़ोल यहां ख़ूब पीटा जमके  !

आखिर, सच बाहर जब भी आया….,

तब सभी चेहरे ख़ूब दमके चमके  !!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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