कभी नींद अपनी गवाना न था,
मुहब्बत हमें हो यें तो सोचा न था,
शरारत जो उनकी अदा में दिखी,
हुआ जो असर दिल को रोका न था।
जो सहमें से रोते वो बच्चे दिखे,
तड़प भूख की पर निवाला न था,
कभी सोच कर मुस्कुराओ हमें,
ज़रा याद कर लो भुलाना न था।
हँसी चाँद मुझे को जो आया नजर,
छिपा बादलों में गवारां न था,
ग़ज़ल में लिखी ज्योति अहसास को,
मिला जो है मौका वो खोना न था।
– ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश