उच्च कर्म अति श्रम के द्वारा, निश्चित हो उत्कर्ष,
बात याद जिसको यह रहती, वह ही पाता हर्ष।
उन्नति की अभिलाषा पूरी, करती इच्छा शक्ति,
बने सहायक बुद्धि तभी मन, जाने ईश्वर भक्ति।
मात पिता शिक्षक कीं बातें, याद रखे यदि व्यक्ति,
नहीं प्रगति से नाता टूटे, मिले आस को शक्ति।
धैर्य बसेरा करे जहाँ पर, रहे लक्ष्य पर दृष्टि,
मित्र बने तब पथ उन्नति का,हो खुशियों की वृष्टि।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश