राम के नाम पर क्यों वतन जल रहा ।
तितलियां जल रहीं हैं चमन जल रहा ।।
झूठ सच्चा लगा सत्य झूठा जचा ।
हाथ में कांच का एक टुकड़ा बचा ।
देश आगे बढ़ा था इरादा लिए ।
सत्य गांधी अहिंसा लबादा लिए ।
साथ बापू किया वो वचन जल रहा ।।1
बाहरी मुल्क के लोग आते रहे ।
व्याज के नाम हम मूल खाते रहे ।
ख्वाब जो आसमानी सजाये कभी ।
कुछ जमीं पर सितारे बुलाये कभी ।
सप्त ऋषियों सजा ये गगन जल रहा ।।2
मज़हबी आग क्यों आज ज्ञापित हुई ।
धर्म निरपेक्षता मिथ्य साबित हुई ।
लोह दीवार साबित हुई मौम की ।
यज्ञ समिधा अधूरी रही कौम की ।
हाथ भी जल रहे आचमन जल रहा ।।3
बाड़ खाने लगी आजकल खेत को ।
नदी निवाला बनाने लगी रेत को ।
देश पर जान देते रहे लाडले ।
बाप माँ के रुदन से भरे हैं गले ।
देख हालात “हलधर” बदन जल रहा ।।
राम के नाम पर क्यों वतन जल रहा ।।4
-जसवीर सिंह हलधर, देहरादून