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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

मैं राह भूला भीड़ में पथ  गूंजते वीरान में ।

लाशें गवाही दे रहीं जीवन दफ़न शमशान में ।

 

वैभव सभी करते नमन क्या याचना देती शरण ,

घायल परिंदे रो रहे उजड़े हुए उद्यान में ।

 

मैं दर्द को धुनता रहा इन पत्थरों के शहर में ,

आँसू अगर बिकते यहाँ  होता बहुत धनवान मैं ।

 

अपने पराये हम सफ़र अब देखते मुँह फेरकर ,

अपनी हदों में कैद हूँ परिणाम से अनजान मैं ।

 

हर प्यास से परिचित हुआ हर भूख से वाकिफ़ हुआ ,

सबका वरण करता मरण  इस बात से हैरान मैं ।

 

आए मदारी मंच पर कविता बदरिया हो गई ,

कवि कीमती पोशाक में कविता फटे परिधान में ।

 

किससे कहूं अब दर्द ये किसको सुनाऊं हाल ए दिल,

नुकसान “हलधर” को हुआ इस सत्य के अभियान में ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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