मौत तू कुछ देर ठहर जा,
जी सकू कुछ दूर पहर जा।
अब समझ पाये जमाना,
झूठ चेहरे से उतर जा।
बात ममता की अगर हो,
तो दुआ मे अब संवर जा।
इस कदर नादान थे हम,
वक्त है दिल तू सुधर जा।
रूह अगर रूह मे बसे तो,
जिस्म चाहे तो बिखर जा।
ये शहीदो की ज़मी है,
दास्ता सुन कर सिहर जा।
गांव “झरना” याद आता है,
उस अयन में तू बसर जा।
– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड