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बेसहारा साथी – अनिरुद्ध कुमार

दूर बावे  किनारा साथी,

आफते अब गुजारा साथी।

 

आहसे रोज लहरे छाती,

प्यार माँगे सहारा साथी।

 

काँप जाला करेजा कुहकी,

याद आवे नजारा साथी।

 

छोह मोहे रुलाये आके,

रोज चाहीं उबारा साथी।

 

होश पछता हमेशा बोले,

ना मिली ऊँ दुलारा साथी।

 

तड़प जानीं पुकारीं केनें,

भेंट होइत दुबारा साथी।

 

काकरी सोंचते रहजानीं,

आज’अनि’ बेसहारा साथी।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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