मनोरंजन

ग़ज़ल – झरना माथुर

घाव  दिल के अब छिपाने हम लगे है,

इस तरह से मुस्कुराने हम लगे है।

 

ज़ख्म से जो ज़ख्म की यारी हुई तो,

दर्द उंगली को गिनाने हम लगे है।

 

ठोकरों में वक्त की रानाइयां (सुंदरता) थी,

उन रूठों को अब मनाने हम लगे है।

 

हाफ़िजा का अंजुमन दिल में बसा है,

आंख में काजल लगाने हम लगे है।

 

उलझनों  की भीड़ मे हम खो गये,

बस अक्स  से खुद को मिलाने हम लगे है।

 

वो कभी था ही नही मेरा यकीं था,

कागज़ी रिश्ते निभाने हम लगे है।

 

काश झरना हमसफर मिलता हमें भी

यूं अकेले घुटघुटाने हम लगे है।

– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

मनहरण घनाक्षरी – मधु शुक्ला

newsadmin

क्या नीट 2024 है घोटाला, कैसे निकले एक ही सेंटर से 8 टॉपर? – सत्यवान सौरभ

newsadmin

मासूम बचपन की – राधा शैलेन्द्र

newsadmin

Leave a Comment