षष्ठ रूप कात्यायिनी माता जगदम्बे का,
दुष्टों की संहारक दुर्गति नाशिनी मां का।
ऋषि घर जन्मी भक्तवत्सला मा भवानी,
कात्यायन की सुता कहाई आदि भवानी।
जब आई विपद देवताओं पर भारी,
दुर्धर रूप धरा दुर्गा ने बनी कराली।
महिषासुर महाबली दुष्ट असुर था,
देवों का देवत्व छीन दुर्जेय बना था।
यज्ञों का सब भाग स्वयं ले लेता था,
श्री हीन देवों को त्रास बहुत देता था।
देवों ने जाकर माता की स्तुति कीन्हीं,
रक्षा करने की माता से विनती कीन्हीं।
रूप धरा विकराल, रण चंडी बन आई,
महिषासुर का वध किया,जगती हर्षाई।
कर असुर संहार, मोक्ष उसको भी दीन्हा,
अभयदान देकर देवों को निर्भय कीन्हा।
महिष मर्दिनी कहलाई कात्यायनी माता,
षष्ठ दिवस उनकी पूजा अर्चन वंदन का।
– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड