आज दिवस पर याद है आयी,
बचपन की तस्वीर वो न्यारी,
जब देखा करते थे हम सब,
आस पास दिखती गौरैया,
कितनी प्यारी कितनी न्यारी,
भूरे -काले पंखों वाली,
फुदक रही अंगना गौरैया,
कभी मुंडेर पे पानी पीती,
कभी दाना चुगती गौरैया,
बीता वक्त हुआ विकास,
कट गए वन कानन ये सारे,
उद्योगों का बिछ गया जाल,
बचे नहीं हैं हरित नीड़ अब,
बेघर हो गयी अब गौरैया,
आँगन गलियां आज तरसतीं,
दिखती नहीं जो अब गौरैया,
देखूं रस्ता अब भी उसका,
काश आ जाये फिर गौरैया,
आज भी रखती भरा सकोरा,
बिखरा देती हूँ कुछ दाने,
चुहुक चुहुक कर आये फिर से,
अंगना में प्यारी गौरैया।
निहारिका झा, खैरागढ़ राज.(36गढ़)