Neerajtimes.com- हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक स्वाभिमान के प्रतीक रही हिंदी ने स्वतंत्रता के आंदोलन में देश को एक सूत्र में पिरो दिया था ।आज हिंदी न सिर्फ स्वाभिमान अपितु स्वावलंबन का पर्याय है।
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है। भाषा ही हमें एक दूसरे के विचारों से परिचित कराती है। हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी राष्ट्रभाषा को भी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। एक प्रश्न मन में उठता है जापान में जापानी भाषा बोली जाती है चीन में चीनी भाषा बोली जाती है और वहांँ के लोग गर्व से अपनी भाषा का सम्मान करते हैं। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी राष्ट्रभाषा को बोलने में शर्म महसूस करते हैं। बहुत दुख होता है जब हमारे देश के नौजवान बोलते हैं, “मेरी हिंदी अच्छी नहीं है, अंग्रेजी तो अच्छे से बोल लेता हूंँ।”
माता-पिता भी अपने पटर-पटर अंग्रेजी में बात करने वाले बच्चों पर बहुत गर्व महसूस करते हैं। भाषा कोई भी बुरी नहीं होती। नवजात वाणी लेकर पैदा होता है भाषा उसे हम देते हैं। अंग्रेजों ने गुरुकुल समाप्त कर शिक्षा पद्धति का कान्वेंटी करण किया और परिणाम हम भुगत रहे हैं।
भारत का स्वर्णिम इतिहास, हमारे ग्रंथों, वेदो पुराणों और महाकाव्य में संरक्षित है। हमारी धरोहर हमारी संस्कृति ,हिंदी और संस्कृत भाषा में ही लिखी हुई है। परंतु उसको कैसे पढ़ेंगे?, दुर्भाग्यपूर्ण हमारे नौजवान अंग्रेजी के अलावा कुछ जानते ही नहीं।
—कहां गई हिंदी भाषा के प्रति हमारी आस्था……
—कहां गया हमारा भाषा के प्रति सम्मान….
विचारणीय बात है? चलिए, आज से हम सब मिलकर प्रण करते हैं कि हम सब अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को अपने सूक्ष्म प्रयासों से उन्नति के उच्चतम शिखर तक ले जाएंगे। एक छोटी कोशिश ही बहुत बड़ा बदलाव ला देती है। अपनी भाषा में अपनी भावनाएं ,अपने विचार व्यक्त करने में जरा-सा भी मत हिचकिचाएँ। हम हिंदी भाषी हैं यह हमारे लिए गर्व की बात है।
” हिंदी गुणों की खान है, यह भारतवर्ष की पहचान है,
हिंद देश के वासी हम , हिंदी हमारी शान है”।
– रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चंडीगढ़