मनोरंजन

झूठसे हो दूरी – अनिरुद्ध कुमार

भोजभातो झंझट,रोज गीनी मूड़ी।

केकरा से जोड़ीं, केकरा से तूरीं।।

 

रातदिन सोंचेनीं,माल कइसे जूरी।

खर्च के थाहे ना, रोज थूरी मूड़ी।।

 

लोग आई जाई, नीक खाई गाई।

ना त जग हंसाईं, देख रोजे घूरी।।

 

मान सम्मान इहे, सोंच काटी खूरी।

केकरा बा चिंता, लोग काटी पूड़ी।।

 

कर्ज पे ताना बा, बोललो माना बा।

के कबो आवेला, कौन बा मजबूरी।।

 

झूठ सांचे भाँजी, हांथ लेले झूरी।

बइठके जोड़ीना, चेंट में का जूरी।।

 

मतलबी दुनिया बा, धारवाली छूड़ी।

के कहाँ सोंचेला, काट लीही मूड़ी।।

 

के इहाँ आपन बा, हाल ऐके लेखा।

घूम जगके देखीं, खींच दी ना रेखा।।

 

गृहस्थी जोगाईं, जिंदगी के धूरी।

रोअला से अच्छा, झूठसे हो दूरी।।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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